समस्याओं से जूझते नागरिकों को कैसे रास आयेगा शिवपुरी महोत्सव

-राजकुमार शर्मा-
शिवपुरी ब्यूरो। शिवपुरी के नागरिक शहर की दुर्दशा पर एक तरफ तो आंसू बहा रहे हैं वहीं प्रशासनिक अधिकारी खुशी का इजहार करने के लिए शहर में आज शिवपुरी महोत्सव की तैयारियां करने में जुटे हुए लेकिन बात तो यह कहीं जा रही है कि जहां शिवपुरी महोत्सव का आयोजन किया जा रहा है उस पोलोग्राउण्ड में पहुंचने तक के लिए रास्ता भी ठीक से उपलब्ध नहीं है। जबकि जिला प्रशासन इस महोत्सव को आयोजित करने के लिए श्रीराम कथा अनुगान, कथक नृत्य शैली सुश्री प्रतिभा रघुवंशी, उज्जैन, होली फाग और मयूर नृत्य सुश्री गीतांजलि शर्मा, मथुरा, वहीं 30 मार्च को सुगम संगीत सुश्री अलका याज्ञनिक, मुम्बई शिवपुरी महोत्सव में अपनी प्रस्तुतियां देंने के लिए बुलाई जा रहीं हैं। शहर की विषम परिस्थितियों के चलते जन सामान्य को शिवपुरी महोत्सव रास कैसे आयेगा। शासन द्वारा आयोजित शिवपुरी महोत्सव किए जाने बाले समारोह पर जनता के गाड़े पसीने की कमाई को पानी की तरह बहाया जाना तय है। जबकि दूसरी ओर शहर का जन सामान्य अपने उदरपूर्ति, पेयजल संकट, उबड़ खाबड़ सड़कों, बेरोजगारी जैसी मूलभूत सुविधाओं को पानी की जद्दो जहद में लगा हुआ है। यहां का प्रमुख पत्थर उद्योग बंद होने से पूर्व में ही हजारों नागरिक रोजगार समाप्त हो जाने से पलायन कर चुके हैं। जिसे रोकने के लिए शासन द्वारा कोई सार्थक प्रयास नहीं किए गए।
यहां बताना प्रासंगिक होगा कि शासन द्वारा शहर विकास के लिए क्रियान्वित योजनायें द्रोपदी के चीर की तरह खिचती जा रही है। जो आज तक पूर्ण होने का नाम नहीं ले रही है। कभी सीवर लाईन तो कभी सड़क निर्माण, तो कभी जलावर्धन योजना के नाम पर खुदाई का सिलसिला अनवरत रूप से जारी है। तो कहीं खुदाई का कार्य भुगतान के अभाव में बंद ठेकेदार द्वारा रोक दिया जाता है। सड़कों पर गड्डों में कई वाहन चालक घायल ही नहीं हुए बल्कि अपनी जान से हाथ धो बैठे हैं। वहीं शहर की प्रमुख समस्या पेयजल से शहर की जनता वर्षो से जूझती चली आ रही है। जिसकी आवश्यकता आंख खुलते ही महसूस की जाती है। जिसके लिए शासन द्वारा सिंध परियोजना बनाई गई, भीषण गर्मी ने अभी दस्तक देना ही शुरू किया है। सड़कों पर पेयजल के लिए कट्टियां लेकर भटकते हुए नागरिक कभी भी देखे जा सकते हैं। शहर में चलाए गए अतिक्रमण विरोधी अभियान के उपरांत टूटे फूटे भवन, गंदगी से भरे नाले व तालाब, सूखा भदैया कुण्ड, चांदपाठा, प्रशासन की लापरवाही एवं उपेक्षापूर्ण रवैये के चलते शिवपुरी अपना अस्तित्व ही खोती जा रही है। पेयजल की समस्या से त्रस्त पब्लिक पार्लियामेंट द्वारा आंदोलन किया गया था, जिसमें क्षेत्रीय सांसद व विधायक द्वारा जन सामान्य को छह माह में सिंध से पेयजल उपलब्ध कराने का आश्वासन दिया था, लेकिन आज तक शहर के नागरिकों को पेयजल उपलब्ध नहीं हो सका है और न ही निकट भविष्य में समस्या का समाधान होने की संभावना दूर-दूर तक नजर नहीं आ रही है। ऐसी विषम परिस्थितियों में शिवपुरी महोत्सव का आयोजन का क्या औचित्य हो सकता है? जहां के नागरिकों को मूलभूत सुविधाओं से बंचित हैं।
शिवपुरी महोत्सव में शिरकत करने आ रहे कलाकारों के समक्ष शिवपुरी की कौन सी छवि प्रस्तुत की जायेगी? उबड़ खाबड़ सड़कों पर चलकर ये कलाकार कैसा महसूस करेंगे? शिवपुरी शहर की गंभीर हालत को देखते हुए ये कलाकार शायद ही भविष्य में शिवपुरी आने को लालायित हों। जिस शहर का जन सामान्य मूलभूत सुविधाओं के लिए आज तक संघर्षरत है, लेकिन प्रशासनिक अमले द्वारा बाहर से आने बाले कलाकारों के समक्ष शिवपुरी की शानदार छवि प्रस्तुत किया जाना तय है जिसके लिए शिवपुरी का प्रशासनिक अमला प्रदेश ही नहीं देश भर में जाना जाता है। यहां जो भी अधिकारी या कर्मचारी आ जाता है यहीं का होकर रह जा जाता है। जिससे यह तथ्य स्वत: ही उजागर हो जाता है कि शिवपुरी का कोई धनी धोरी नहीं है।
शहर की जनता मूलभूत सुविधाओं, खासकर पेयजल, सड़कों, रोजगार, जैसी समस्याओं से जूझ रही है कई ग्रामीणा क्षेत्रों में भुखमरी तक के हालात है तब ऐसी स्थिति में जन सामान्य को कथक नृत्य व सुगम संगीत कैसे रास आयेगा? शिवपुरी महोत्सव के आयोजन से शासकीय अमले की बांछे अवश्य खिली हुई नजर आ रही है।

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