शिवपुरी।
शहर की राजनीति इन दिनों एक नए मोड़ पर खड़ी है। कारण है—विधायक देवेंद्र कुमार जैन के नाम से वायरल हुआ एक कथित “पत्र”, जिसे खुद विधायक ने फर्जी करार देते हुए पुलिस अधीक्षक को शिकायत सौंपी है। सवाल सिर्फ इतना नहीं कि दस्तावेज नकली है, असल सवाल यह है कि कौन लोग ऐसी चालें चल रहे हैं और आखिर उनकी मंशा क्या है?
लोकतंत्र पर सीधा प्रहार
पत्र में विधायक के हस्ताक्षर तक की नकल की गई। यह महज़ शरारत नहीं बल्कि लोकतांत्रिक विश्वास पर सीधा हमला है। अगर आज एक निर्वाचित प्रतिनिधि के नाम से फर्जी आदेश बनाए जा सकते हैं, तो कल सरकारी योजनाओं, प्रशासनिक आदेशों या न्यायिक फैसलों को भी जाली दस्तावेज़ों के सहारे तोड़ा-मरोड़ा जा सकता है।
जांच या औपचारिकता?
पुलिस ने मामला दर्ज कर जांच शुरू कर दी है। लेकिन जनता का संदेह गहरा है—क्या इस बार दोषी सचमुच सामने आएंगे या फिर यह केस भी पुराने ढर्रे पर रुक जाएगा, जहां कागज़ी कार्रवाई और बयानबाजी के बीच असली अपराधी बच निकलते हैं। यह मामला केवल विधायक की छवि का सवाल नहीं है, बल्कि पुलिस की साख और कानून व्यवस्था पर जनता का भरोसा दांव पर है।
राजनीति की चाल या भीतरघात?
सोशल मीडिया पर तरह-तरह के कयास लगाए जा रहे हैं।
क्या यह किसी विरोधी गुट की सोची-समझी चाल है, ताकि विधायक की साख पर कीचड़ उछाला जा सके?
या फिर नगर पालिका की अंदरूनी गुटबाजी और भ्रष्टाचार से जुड़ा कोई भीतरघात है?
आखिर किसके पास इतना साहस और संसाधन है कि विधायक का लेटरहेड और हस्ताक्षर तक हूबहू कॉपी कर सके?
जनता के सवाल
1. क्या पुलिस सच में आरोपियों तक पहुँचेगी या मामला फाइलों में दब जाएगा?
2. क्या यह लोकतंत्र को भीतर से खोखला करने की सुनियोजित कोशिश है?
3. क्या राजनीति अब इतनी गिर चुकी है कि चरित्र हनन के लिए नकली दस्तावेजों को हथियार बनाया जाएगा?
👉 यह प्रकरण महज़ एक फर्जी पत्र का मामला नहीं है, बल्कि यह उस भरोसे की लड़ाई है जो जनता ने अपने प्रतिनिधियों और संस्थाओं पर जताया है। असली कसौटी अब पुलिस और प्रशासन की है कि वे इस साजिश का सच कितनी गहराई से उजागर कर पाते हैं।
