VIDEO: हल्दीघाटी की मिट्टी से शिवपुरी के तात्याटोपे समाधि पर तिलक कर किया पौध-रोपण, जानिए हल्दीघाटी युद्ध के बारे में,



शिवपुरी-अपने मित्रों गोपाल  यादव, गिरजा शंकर यादव, विपिन यादव, पुष्पेंद्र दांगी, धर्मेंद्र लोधी के साथ वीर महाराणा प्रताप की युद्ध स्थली #हल्दीघाटी की पावन भूमि मे जाने का सौभाग्य प्राप्त हुआ आपकी आवाज संगठन के प्रणेता समाज सेवक सांकेत पुरोहित को जो भारतीय इतिहास की शौर्य गाथा को अपने में समाहित किए हुए हैं। 




हल्दीघाटी अपने नाम के अनुरूप अपने हल्दी रंग में रंगी हुई है... वीरों की इस रज धूल को प्रणाम करके कुछ मिट्टी संग्रहित कर तात्या टोपे जी की शहादत भूमि शिवपुरी में लाने का सौभाग्य प्राप्त हुआ।




जहां मदद बैंक के प्रमुख सेवादार ब्रजेश सिंह तोमर जानकी सेना संगठन के अध्यक्ष श्री विक्रम रावत  संगठन के साथियों में दुर्गेश गुप्ता, आदित्य शिवपुरी, प्रेम पाराशर, नरेंद्र पचौरी, राजीव शर्मा , अन्नू तोमर, प्रमोद श्रीवास्तव , एवम अन्य साथियों द्वारा तात्याटोपे स्मारक पर मिट्टी की पूजा कर यात्री साथियों का माल्यार्पण कर स्वागत किया.. साथ ही सभी उपस्थित  सेवादारों का हल्दीघाटी की मिट्टी से तिलक किया और इसी मिट्टी से सभी सदस्यों ने मिलकर तात्या टोपे पार्क में पौधरोपण किया।


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शीश कटा पर झुका नहीं रण क्षेत्र ये हल्दीघाटी है,

देश के खातिर मरमिट जाना वीरों की परिपाटी है।


जानिए हल्दीघाटी युद्ध के बारे में,


4 घंटे की लड़ाई थी हल्दीघाटी, राणा ने की थी मुगलों की हालत पतली


हल्दीघाटी के युद्ध में महाराणा प्रताप की वीरता और शौर्य के किस्से हर किसी की जुबान पर है. यह मध्यकालीन इतिहास का सबसे चर्चित युद्ध है, जिसमें मेवाड़ के राणा महाराणा प्रताप और मानसिंह के नेतृत्व वाली अकबर की विशाल सेना का आमना-सामना हुआ था


बता दें कि यह लड़ाई आज ही के दिन 442 साल पहले 1576 में लड़ी गई थी.


इस युद्ध के लिए महाराणा प्रताप को याद किया जाता है. कहा जाता है कि इस युद्ध में उनके पास मुगलों की तुलना में आधे सिपाही थे और उनके पास मुगलों की तुलना में आधुनिक हथियार भी नहीं थे, लेकिन वे डटे रहे और मुगलों के दांत खट्टे कर दिए. मुगलों की हालत इस जंग में पतली हो गई थी तभी उन्हें शक्ति सिंह के रूप में महाराणा का भेदिया भाई मिल गया. शक्ति सिंह ने मुगलों के समक्ष महाराणा की सारी सैन्य रणनीति और खुफिया रास्तों का खुलासा कर दिया.


चार घंटे चला था युद्ध


इस बात पर लगातार बहस होती रही है कि इस युद्ध में अकबर की जीत हुई या महाराणा प्रताप ने जीत हासिल की? इस मुद्दे को लेकर कई तथ्य और रिसर्च सामने भी आए हैं. कहा जाता है कि लड़ाई में कुछ भी निष्कर्ष नहीं निकला था. हालांकि आपको बता दें कि यह जंग 18 जून साल 1576 में चार घंटों के लिए चली थी. इस पूरे युद्ध में राजपूतों की सेना मुगलों पर बीस पड़ रही थी और उनकी रणनीति सफल हो रही थी.

मुगलों का हो गया था कब्जा


इस युद्ध के बाद मेवाड़, चित्तौड़, गोगुंडा, कुंभलगढ़ और उदयपुर पर मुगलों का कब्जा हो गया. सारे राजपूत राजा मुगलों के अधीन हो गए और महाराणा को दर-बदर भटकने के लिए छोड़ दिया गया. महाराणा प्रताप हल्दीघाटी के युद्ध में पीछे जरूर हटे थे लेकिन उन्होंने मुगलों के सामने घुटने नहीं टेके. वे फिर से अपनी शक्ति जुटाने लगे.


महाराणा प्रताप के पास कम थी सेना


इतिहासकार बदांयूनी ने लिखा है कि “5,000 सवारों के साथ कूच किया.” दुश्मन को लग सकता था कि 5,000 की सेना है मगर ये असल में सिर्फ घो़ड़ों की गिनती है, पूरी सेना की नहीं. इतिहास में सेनाओं की गिनती के अलग-अलग मत हैं. वहीं ब्रिटिश इतिहासकार कर्नल जेम्स टॉड ने लिखा है कि 22,000 राजपूत 80,000 मुगलों के खिलाफ लड़े थे. ये गिनती इसलिए गलत लगती है क्योंकि अकबर ने जब खुद चित्तौड़ पर हमला किया था तो 60,000 सैनिक थे. ऐसे में वो मान सिंह के साथ अपने से ज्यादा सैनिक कैसे भेज सकता था? साथ ही मेवाड़ की तरफ से तोपों का इस्तेमाल न के बराबर हुआ. खराब पहाड़ी रास्तों से राजपूतों की भारी तोपें नहीं आ सकती थीं. जबकी मुगल सेना के पास ऊंट के ऊपर रखी जा सकने वाली तोपें थीं.


'प्रताप ने जीता था युद्ध'


उदयपुर के राजस्थान विद्यापीठ विश्वविद्यालय के मीरा कन्या महाविधालय के एक प्रोफेसर डाक्टर चंद्रशेखर शर्मा ने एक शोध किया. इस शोध में उन्होंने पाया कि कि हल्दीघाटी की 18 जून 1576 की लड़ाई में महराणा प्रताप ने अकबर को हराया था. डॉ. शर्मा ने अपने रिसर्च में प्रताप की जीत के पक्ष में ताम्र पत्रों के प्रमाण जनार्दनराय नागर राजस्थान विद्यापीठ विश्वविद्यालय में जमा कराए हैं. शर्मा की खोज के अनुसार युद्ध के बाद अगले एक साल तक महाराणा प्रताप ने हल्दीघाटी के आस-पास के गांवों की जमीनों के पट्टे ताम्र पत्र के रूप में बांटे थे जिन पर एकलिंगनाथ के दीवान प्रताप के हस्ताक्षर हैं.


उस समय जमीनों के पट्टे जारी करने का अधिकार सिर्फ राजा को ही होता था. जो साबित करता है कि प्रताप हीं युद्ध जीते थे. डॉ. शर्मा ने शोध किया है कि हल्दीघाटी युद्ध के बाद मुगल सेनापति मान सिंह व आसिफ खां के युद्ध हारने से अकबर नाराज हुए थे. दोनों को छह महीनें तक दरबार में नहीं आने की सजा दी गई थी. शर्मा कहते हैं कि अगर मुगल सेना जीतती तो अकबर अपने प्रिय सेनापतियों को दंडित नहीं करते. इससे साफ जाहिर है कि महराणा ने हल्दीघाटी के युद्ध को संपूर्ण साहस के साथ जीता था.

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