दो शातिर भाई की गैंग ने चलाये ५० करोड़ के सिक्के

नकली करेंसी सिक्के चलाने वाले गैंग का खुलासा शातिर आदतन अपराधी दोनों भाई कई बार  नकली करेंसी  के आरोप में अरेस्ट हो चुके है अपने गैंग को उत्तर भारत में कर रखा था एक्टिव और अब तक ५० करोड़ से अधिक के नकली सिक्के खपा चुके है जानिये  शातिर माइंड दो भाइयो के बारे में ,  

                                       प्रतीकात्मक तस्वीर 

नकली करंसी के धंधे में उपकार और स्वीकार लूथरा कुख्यात नाम हैं। इन दोनों भाइयों को कई बार नकली करंसी के सर्क्युलेशन के आरोपों में अरेस्ट किया गया है। लेकिन, हर बार सलाखों से बाहर निकलने के बाद अपने सिंडिकेट को चलाना शुरू कर देते हैं। यह गैंग लगभग पूरे उत्तर भारत में ऐक्टिव है। बीते कुछ सालों में दोनों भाइयों ने मिलकर 50 करोड़ रुपये तक के सिक्कों को ढालने का काम किया और उन्हें मार्केट में सर्क्युलेट करने का भी काम किया।
इन फैक्ट्रियों पर की गई छापेमारी पर में 5 और 10 रुपये के 6 लाख की कीमत के सिक्के बरामद हुए हैं। दोनों ने पार्टनर के तौर पर रमेश वर्मा नाम के शख्स को अपने साथ जोड़ा था और उत्तम नगर में फैक्ट्री स्थापित की थी। लेकिन, वह दोनों के लिए खतरा साबित होने लगा। इसके बाद उपकार ने एक हिटमैन को हायर किया और उसका कत्ल करवा दिया।
इस गैंग ने अपने नापाक मंसूबों को अंजाम देने के लिए हाइड्रॉलिक मशीन, ग्राइंडिंग खरद मशीन और सर्फेस ग्राइंडिंग की मशीनें लगा रखी थीं। दोनों भाइयों ने स्लम बस्ती के एक घर को फैक्ट्री में तब्दील कर रखा था।


नकली सिक्कों का कारोबारी यह गैंग दिल्ली के मायापुरी और तिलक नगर इलाके से मेटलिक शीट्स जैसे कच्चे माल की खरीद करता था। उपकार ने नकली सिक्कों को तैयार करने की डाई बनाना सीख लिया था। उसने गैंग के कई और लोगों को भी यह काम बखूबी सिखा दिया था।इन सिक्कों को तैयार करने के लिए ब्रास शीट्स को दो टुकड़ों में काटा जाता था। पहले आउटर रिंग को तैयार किया जाता था।
उसके बाद बीच के हिस्से की छपाई की जाती थी। बीच के हिस्से को निकल पॉलिश किया जाता था। इसके बाद दोनों पार्ट्स को हाइड्रॉलिक मशीन से जोड़ा जाता था। इसके बाद इन सिक्कों की ऐंटी-रस्ट स्प्रे से कोटिंग की जाती थी ताकि वह पूरी तरह असली सिक्के सरीखा ही दिखे।
इन सिक्कों को तैयार करना भी सस्ता था। यह गैंग 10 रुपये के एक सिक्के को महज 4.5 रुपये और 5 के सिक्के को 2 रुपये तक में तैयार करता था। इसके बाद इन सिक्कों को टोल टैक्स सेंटर्स, साप्ताहिक बााजारों और दिल्ली, हरियाणा और राजस्थान के छोटे दुकानदारों के जरिए मार्केट में फैलाया जाता था।



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