*🎯खबरीलाल की खबर-09🎯**
*👉 फलाहार का सियासी स्वाद, ग्वालियर की ठंडक में गर्मा-गर्म समीकरण!*
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★सर्द मौसम में सुबह सुबह खबरीलाल जी आ धमके ओर बिना किसी औपचारिकता के नॉन स्टॉप शुरू हो गये।पता है कुछ...? ग्वालियर की हवाओं में अचानक सियासी गर्मी घुल गई है। पूर्व मंत्री रामनिवास रावत के घर "फलाहार" का बहाना बनाकर भाजपा के दिग्गज नेताओं का जमावड़ा लग चुका है। मंच सजा नहीं था, पर सियासत का रंग पूरे जोश में था। मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव, जयभान सिंह पवैया, और विवेक नारायण शेजवलकर जैसे बड़े नाम वहां दिखाई दिए, लेकिन मज़ेदार बात यह रही कि सिंधिया गुट के नेताओं ने बड़ी चतुराई से इस आयोजन से किनारा कर लिया। अब ग्वालियर से भोपाल तक एक ही चर्चा है: "रामनिवास रावत का जल्द होगा सियासी पुनर्वास?"
खबर सुनकर हमारे भी कान खड़े हो गये।हमने कहा भई,रामनिवास रावत की राजनीतिक यात्रा किसी "रोलर कोस्टर"(उतार चढ़ाव बाला बिचित्र प्रकार का झूला) से कम नहीं रही। श्योपुर से कांग्रेस विधायक रहे रावत ने कमल का फूल पकड़कर भाजपा में एंट्री तो मारी, लेकिन उपचुनाव में मात खा गए। भाजपा ने उन्हें प्रत्याशी तो बनाया, पर हार का ठीकरा उनकी झोली में गिरा। तब से रावत सियासी उपेक्षा का शिकार बने हुए थे। परंतु, अब यह फलाहार कथा उनकी नई राजनीतिक भूमिका का संकेत दे रही है।
खबरीलाल जी बोले कि इस फलाहार पार्टी में एक बात खास रही कि रावत के घर भाजपा नेताओं का जमावड़ा तो दिखा, परंतु सिंधिया गुट के नेताओं की गैर-मौजूदगी ने सबका ध्यान खींचा। क्या सिंधिया गुट को रावत का पुनर्वास रास नहीं आ रहा? या यह महज राजनीतिक परिपक्वता का प्रदर्शन है?
भाजपा, जो रावत जैसे जमीनी नेताओं को वापस सक्रिय राजनीति में लाकर आगामी चुनावों के लिए रणनीति बना रही है, क्या इस "फलाहार कूटनीति" से नए समीकरण बनाने की कोशिश कर रही है?
अगर रावत का पुनर्वास होता है, तो कांग्रेस को श्योपुर जैसे इलाकों में अपनी पकड़ और मजबूत करनी होगी।
खबरीलाल नॉन स्टॉप बोल रहे थे कि यह फलाहार पार्टी केवल व्रत तक सीमित नहीं है ,बल्कि इसके पीछे सियासी भूख छिपी थी। क्या रावत को संगठन में नई भूमिका दी जाएगी? क्या वे आगामी विधानसभा चुनाव में सिंधिया गुट के प्रभाव को चुनौती देने वाले होंगे।
रामनिवास रावत कांग्रेस के समय से ही अपने मजबूत जनाधार के लिए जाने जाते हैं।
भाजपा में आने के बाद उनकी सक्रियता कम हुई, परंतु अब "फलाहार राजनीति" ने उन्हें फिर चर्चा में ला दिया।
जयभान सिंह पवैया और सिंधिया गुट की अनकही खटपट किसी से छिपी नहीं है, और यह दूरी उसी का नतीजा लगती है।
"सियासत में न दोस्त स्थायी होते हैं, न दुश्मन!" यह फलाहार राजनीति केवल रामनिवास रावत का पुनर्वास नहीं, बल्कि ग्वालियर-चंबल क्षेत्र में भाजपा की रणनीति का हिस्सा भी है। सिंधिया गुट बनाम पुराने भाजपाई नेताओं की भीतरी खींचतान आने वाले चुनावों में और रोचक मोड़ ला सकती है।
अब खीसे निपोरते हुये हम भी खबरीलाल जी की खबर पर हाँ हाँ किये जा रहे थे और सोच रहे थे कि कही न कही कुछ तो है जी..!फलाहार की खिचड़ी यू ही तो नही पक रही ...?
🔍तो, जनाब! फलाहार के बहाने सियासी स्वाद कैसा लगा? अगली कड़ी में मिलते हैं, जहां हर खबर के पीछे की खबर सामने लाएंगे। "वाकई,कमाल की चीज है खबरीलाल जी...!!!"👍
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*(✍️बृजेश सिंह तोमर)*
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✍️✍️✍️✍️शेष फिर-..✍️